मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिशविद्, चंडीगढ़:
श्रावण का संपूर्ण मास मनुश्यों ही नहीं अपितु पषु-पक्षियों में भी एक नव चेतना एवं मदनोत्सव का संचार करता है जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है और रिमझिम फुहारें साधारण से व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती हैं। इसी लिए हमारी फिल्मों में सावन के गीतों की भरमार है चाहे -‘सावन का महीना , पवन करे सोर’ हो या ‘आया सावन झूम के’ जैसे सदाबहार गीत हों । सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है। प्रकृति हरियाली और फूलों से धरती का श्रृंगार कर देती है।
परंतु धार्मिक परिदृष्य में सावन मास ,भगवान षिव को ही समर्पित रहता है। मान्यता है कि षिव आराधना का इस मास विषेश फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे देष के 12 ज्यातिर्लिंगों में विषेश पूजा अर्चना व अनुश्ठान की बड़ी प्राचीन व पौराणिक परंपरा रही है। रुद्राभिशेक के साथ साथ महामृत्यंज्य का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विषेश पूजा का महत्वपूर्ण समय रहता है। यह वह मास है जब कहा जाता है – जो मांगोगे , वही मिलेगा। जीवन साथी की तमन्ना है तो वह भी मिल जाता है। भोले नाथ सब का भला करते हैं ।
कब कब हैं सावन के सोमवार ?
एक गणना के अनुसार 16 जुलाई को सूर्य संक्राति के बाद सावन का पहला सोमवार 20 जुलाई, दूसरा 27 जुलाई, तीसरा 3 अगस्त, चैथा 10 अगस्त को पड़ेगा। सोमवार 17 अगस्त को भाद्रपद संक्रांति दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर आ जाने से 5 सोमवार हो जाएंगे।
दूसरी गणना के अनुसार 31 जुलाई को गुरु पूर्णिमा व आशाढ़ी प्ूार्णिमा है। सावन 1 अगस्त से 29 अगस्त तक रहेगा। पहली अगस्त को श्रावण का कृश्ण पक्ष आरंभ होगा परंतु इस दिन षनिवार है। इसलिये श्रावण मास का पहला सोमवार अगस्त की 3, को पड़ेगा तथा षेश 10,17 ,24 तारीखों को होंगे। सावन का अंतिम दिन 29 अगस्त को राखी के त्योहार पर होगा।
इस मास के सोमवार पर उपवास रखे जाते हैं। कुछ श्रद्धालु 16 सोमवार का व्रत रखते हैं। श्रावण मास के मंगलवार के व्रत को मंगला गौरी व्रत कहा जाता है। जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा है, उन्हें सावन के महीने में मंगला गौरी का व्रत रखना फलदायक रहता है। सावन के महीने में सावन षिवरात्रि और हरियाली अमावस का भी अपना अलग महत्व है।
क्यों है सावन इतना महत्वपूर्ण ?
सावन के सोमवार पर रखे गए व्रतों की महिमा अपरंपार है। जब सती ने अपने पिता दक्ष के निवास पर षरीर त्याग दिया था, उससे पूर्व महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था। पार्वती ने सावन के महीने में ही निराहार रहकर कठोर तप किया और भगवान षिव को पा लिया। इसी लिए यह मास विषेश हो गया और सारा वातावरण षिवमय हो गया। इस अवधि में विवाह योग्य लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए सावन के सोमवारों पर व्रत रखती हैं। इसमें भगवान षिव के अलावा षिव परिवार की अर्थात माता पार्वती , कार्तिकेय, नंदी और गणेष जी की भी पूजा की जाती है। सावन के व्रत स्त्री पुरुश दोनों ही रख सकते हैं। सोमवार को उपवास रखना श्रेश्ठ माना गया है परंतु जो नहीं रख सकते वे सूर्यास्त के बाद एक समय भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
कैसे करें पूजन?
श्रावण के प्रथम सोमवार ,प्रातः और सायंकाल स्नान के बाद, षिव परिवार की पूजा करें । इस वर्श पहले सोमवार को चतुर्थी भी है अतः पुत्र प्राप्ति तथा संतान की सुख समृद्धि के लिए गणेष जी की विषेश पूजा भी कर सकते हैं। पूर्वामुखी या उत्तर दिषा की ओर मुंह करके , आसन पर बैठ कर , एक ओर पंचामृत, अर्थात दूध, दही,घी, षक्कर,षहद व गंगा जल रख लें । षिव परिवार को पंचामृत से स्नान करवाएं। फिर चंदन , फूल, फल,सुगंध,रोली व वस्त्र आदि अर्पित करें । षिवलिंग पर सफेद पुश्प, बेलपत्र, भांग, धतूरा ,सफेद वस्त्र व सफेद मिश्ठान चढ़ाएं । गणेष जी को दूर्वा यानी हरी घास, लडडू या मोदक व पीले वस्त्र अर्पित करें । भगवान षिव की आरती या षिव चालीसा पढ़ें । गणेष जी की आरती भी धूप दीप से करें । षिव परिवार से अपने परिवार की सुख समृद्धि की प्रार्थना करें ।
महादेव की स्तुति दिन में दो बार की जाती है। सूर्यादय पर ,फिर सूर्यास्त के बाद। पूजा के दौरान 16 सोमवार की व्रत कथा और सावन व्रत कथा सुनाई जाती है। पूजा का समापन प्रसाद वितरण से किया जाता है।
इस मंत्र का जाप अत्यंत उपयोगी माना गया है-
!! ध्यायेन्नित्यंमहेषं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्जवलांग परषुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम !!
अन्यथा आप साधारण एवं सर्वाधिक सर्वप्रिय पंचाक्षरी मंत्र ‘ओम् नमः षिवाय ’ और गणेष मंत्र ‘ओम् गं गणपतये नमः’ का जाप करते हुए सामग्री चढ़ा सकते हैं ।
आने वाले विषेश पर्व
27 जुलाई- हरिषयनी एकादषी
31 जुलाई व्यास पूजा-गुरु पूर्णिमा
10 अगस्त- कामिका एकादषी
17 अगस्त- मधुश्रवा हरियाली सिंघारा तीज
20 अगस्त- नागपंचमी
26 अगस्त- पवित्रा एकादषी
29 अगस्त- श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षा बंधन का षुभ समय दोपहर 1 बजकर 50 मिनट के बाद
विषेशः षुक्र 5 अगस्त से 20 अगस्त तक अस्त रहेगा और गुरु 12 अगस्त से 7 सितंबर तक अस्त रहेगा। इस अवधि में विवाह जैसे मांगलिक कार्य षुभ नहीं माने जाते। इस लिए पहली अगस्त के बाद विवाह के मुहूर्त 14 अक्तूबर से ही आरंभ होंगे।
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