मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषविद् ; यदि किसी धर्म गुरु या विद्वान से प्रशन किया जाए कि मंगलवार को मदिरापान या मांसाहार क्यों नहीं करना चाहिए ? बाल क्यों नहीं कटाने चाहिए ? तो उनका एक साधारण सा उत्तर होगा कि यह हमारे शास्त्रों में वर्जित है। मंगलवार को शराब पीने या मांस खाने से पाप लगता है। घर बरबाद हो जाता है। हनुमान जी के रुश्ट होने से संकट आ सकता है। एक्सीडेंट हो सकता है। कानूनी चक्क्र पड़ सकते हैं। यदि उनसे शास्त्र का नाम या उस श्लोक के बारे पूछा जाए जिसमें ये बातें लिखित रुप में विद्यमान हैं तो वे बगलें झांकने लगते हैं। अधिकांश ऐसे लोगों को यह भी नहीं पता कि रामायण, गीता ,महाभारत, दुर्गासप्तशी के अलावा और कौन कौन से ग्रन्थ,ब्रहमसूत्र, कितने वेद ,उपनिषद, श्रुतियां ,स्मृतियां ,सूत्र, आरण्यक, संहिता, योग, तंत्र, मंत्र, यंत्र, कर्मकांड, उपासना कांड , ज्योतिश जो वेदों के छः अंगो का एक वेदांग है……आदि आदि हिन्दू धर्म में हैं? जबकि विद्यानुसार एक शास्त्री जी से इन सभी शास्त्रों का ज्ञान अपेक्षित है। यदि आप अधिक प्रशन पूछेंगे तो कई महानुभाव आपको नास्तिक या हिन्दू विरोधी उपाधि से अलंकृत कर सकते हैं और यदि कहीं वे किसी दल या पार्टी से संबंधित हों तो, हो सकता है आप इनके क्रोध का भाजन ही बन जाएं। परंतु बहुत कम विद्वान ही उचित तर्क दे पाते हैं।
वस्तुतः हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में मंगलवार को शराब पीने पर कहीं पाबन्दी नहीं लगाई गई है। न ही गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित हनुमान जी के किसी साहित्य में ही इस का उल्लेख है कि हनुमान जी ने कभी ऐसा आदेश दिया हो कि मंगलवार को मदिरा सेवन या अन्य कर्म नहीं करने की मनाही है । जबकि देवताओं या राक्षसों द्वारा सुरापान या सोमरस का आनंद लेने का विवरण कई धार्मिक पुस्तकों में मिल जाएगा परंतु इसे मंगलवार या हनुमान जी से कहीं नहीं जोड़ा गया। तो क्या यह एक मिथ है ? मानव निर्मित विधान है? या अंध विश्वास है या इसके पीछे कोई तथ्य ,तर्क , साक्ष्य या प्रमाण है?
एक सूत्रानुसार भारत में पहले हर प्रकार के पशु का मांस खाने की प्रथा थी। आलू ,प्याज टमाटर तथा ऐसी कितनी ही सब्जियां आदि भारत में बहुत बाद में आई। कुछ अन्य सब्जियां भारत में पुर्तगाली, अंग्रेज , फ्रांसीसी तथा इसी प्रकार के विदेशी लोग लेकर आए और बदले में दक्षिण भारत से मसाले , रेशम आदि विदेश ले गए थे। अतः अधिकांश लोग पशु – पक्षियों पर ही आधारित थे। पशुओं की संख्या कम न हो जाए , इसके लिए धर्म गुरुओं ने धर्म के भय का सहारा लिया और इसे धर्म तथा एक देवता की उपासना के साथ जोड़ दिया।
एक सर्वे के अनुसार मनुष्य आज हर सैकेंड 1776 जानवर खाने के लिए मारता है और 70 प्रतिशत मीट बकरे का खाया जाता है, उसके बाद नंबर बेचारे चिकन का आता है। यदि एक दिन मांसाहार न किया जाए तो एक वर्ष में कम से कम 52 दिन जीव हत्या नहीं होगी और पशु धन बचेगा। आप ने देखा ही है कि शेरों की संख्या लगातार कम होती जा रही है और उनकी जाति का संरक्षण किया जा रहा है । इसी तरह बहुत पहले भी हमारे पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह अनुमान लगाया कि वन्य जीवों का यदि इसी गति से भक्षण होता रहा तो एक दिन इनकी जनसंख्या भी कम हो जाएगी क्योंकि उसे खाया तो एक दिन में जा सकता है परंतु उसकी उत्पत्ति में तीन महीने से लगभग एक वर्श लग जाता है। यह प्राकृतिक अनुपात व संतुलन बिगड़ न जाए, इसी लिए एक दिन के व्रत की परंपरा हिन्दू समाज में रखी गई।
एकादशी के दिन चावल का सेवन न हो ं, एक दिन पशुभक्षण न हो, एक दिन सत्य बोला जाए तो सत्यनारायण का व्रत रख कर प्रण किया जाए कि मैं सदा सत्य बोलुंगा। गुरुवार को सिर न धोया जाए ताकि जल संरक्षण हो सके । आज भी राजस्थान महाराष्ट्र््र् और हिमाचल जैसे राज्यों में महिलाएं कुओं या बावड़ियों से जल भर कर लाती हंै। उन्हें भी एक दिन का आराम मिले और जल संरक्षण हो , इस उदेश्य को सामने रख कर वीरवार को सिर न धोने और साबुन न लगाने की परंपरा बनाई गई और उसे धर्म के नाम से जोड़ दिया गया ताकि समाज में एक अनुशासन बना रहे। हालांकि साबुन हिन्दुस्तान में बहुत बाद में आया ।
बृहस्पतिवार की कथा में केवल कहानी के माध्यम से बताया गया है कि इस दिन व्रत रखा जाए और केश आदि न धोए जाएं नही ंतो कहानी के पात्रों की तरह आप को भी कष्ट उठाने पडे़ंगे। भगवान सत्यनारायण की कथा के पांचों अध्यायों में भी तो कहानी के पात्रों को कष्ट उठाना पड़ता है और जब वे सत्य का व्रत रखते हैं प्रायश्चित करते हैं तो उनका कल्याण हो जाता है। उन दिनों जनसाधारण इतना पढ़ा लिखा नहीं था कि इसका मर्म, तर्क, उदेश्य समझता । इस लिए हर बात का पालन करने के लिए धर्म या देवता का सहारा लिया गया।
म्ंागलवार को संपूर्ण नशाबंदी का संदेश भारत में केवल हिन्दुओं में ही हनुमान जी के नाम से प्रचलित है अन्य धर्मों में कहां है ? अन्य देशों में कहां है? वहां के लोगों को क्या आप हनुमान जी का डर दिखा कर शराब बंद करवा सकते हैं ?
1965 में स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी ने अनाज बचाने के लिए सोमवार के दिन एक समय ही भोजन करने की अपील की थी ताकि खाद्य समस्या से लड़ा जा सके और अन्न बचाया जा सके जब हमें गेहूं अमरीका से मंगवाना पड़ता था। प्रदूषण नियंत्रण या तेल की खपत कम करने के लिए जैसे आज हम वाहन फ्री डे मनाते हैं या सम – विषम नंबर के वाहन एक एक दिन चला रहे हैं, इसी तरह बचत या संरक्षण हेतु ऐसे नियम ,धर्म के साथ या किसी न किसी देवता के नाम जोड़ दिए गए।
कोई भी व्यवसाय हो उसमें एक दिन का अवकाश आराम के लिए आवश्यक होता है। अ्रग्रेजों ने ‘सैबथ डे ‘ अर्थात संडे ,रविवार को एक पवित्र दिन माना और चर्च में प्रार्थना करने के लिए इसे सरकारी अवकाश घोशित कर दिया। व्यावसायिक प्रतिष्ठान रविवार को बंद करवा दिए। छावनियों में यह अवकाश पहले मंगलवार होता था ,आजकल सोमवार को होता है। मुस्लिम देशों में शुक्रवार कर दिया गया। अधिकांश ज्योतिषी गुरुवार को काम बंद रखते हैं। केश कर्तन करने वालों ने मंगलवार के दिन काम कम होने के कारण अवकाश कर लिया । कर्नाटक में तो मंगलवार के दिन एक वर्ग ने नाई की दुकानें बंद रखने का विरोध भी किया था । सिक्ख एवं ईसाई धर्म में विवाह का दिन रविवार निश्चित कर दिया गया। माना गया कि रविवार हर काम के लिए शुभ होता है।
वास्तव में ‘आपस्तम्ब ’ भारत के प्राचीन गणितज्ञ एवं सूत्रकार हैं जिनके साहित्य में रेखा गणित, वास्तुशास्त्र, गृह संस्कार, धार्मिक क्रियाओं , यज्ञ कुंड और वेदिका का माप, उपनयन, दंड , मेखला, व्रत, तप, यज्ञ, प्रणाम करने की विधि,शिष्टाचार,ब्रहम हत्या,भ्रूण हत्या ,वर्जित विक्रय ,सुरापान, व्याभिचार, चैर्य, हत्या ,वध, आत्मघात, पाणिग्रहण, दान , श्राद्ध, चार आश्रम, राजधर्म, अभियोग, विवाह , गृहसूत्रों आदि के बहुत से नियमों व सूत्रों का उल्लेख है।
कालान्तर में देश काल , परिस्थितियों के अनुसार धार्मिक , सामाजिक नियम बने और समय की मांग के अनुसार बदलते गए। हिन्दुओं में पर्दे और सती की प्रथाएं नहीं थी परंतु जुल्म के दौर में बन गई। इसी प्रकार देश के विभिन्न राज्यों , विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों,आस्थाओं के अनुसार नियम बनते गए और धर्म को माध्यम बनाकर उसे चलाया गया। संपूर्ण भारत में न तो भाषा एक सी मिलेगी ,न रीति रिवाज ओैेर न ही धार्मिक आस्थाएं । शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध के विषय में किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलेगा। न ही उत्तर भारत में ऐसा कभी हुआ। लेकिन शिंगणापुर इसका अपवाद रहा। हनुमान चालीसा महिलाएं न पढ़ें , यह भी कहीं प्रमाणित नहीं है। यह सब समय समय पर आवश्यकतानुसार अलग अलग स्थानों पर आस्था , स्थानीय परंपरा , स्थानीय मार्गदर्शकों द्वारा बदलाव होता रहा है।
ज्योतिष में क्या कहते हैं मंगल के बारे ?
मंगल वार का नाम ही मंगल ग्रह से पड़ा है। मंगल का अर्थ भी कुशल ,पवित्र तथा शुभ होता है। मंगल का दिन एवं ग्रह हिन्दू संस्कृति में हनुमान जी से जोड़ा गया है। यूनान और स्पेन में मंगलवार को अशुभ माना जाता है। वहां पारंपरिक कहावतों के अनुसार मंगलवार को यात्रा या विवाह नहीं करते। कई देशों में ब्लैक टयूजडे भी कहा जाता है और शुभ कार्य नहीं किए जाते।
म्ंागल को ज्योतिष में क्रूर ग्रह कहा जाता है। मंगल लाल रंग का उष्ण ग्रह है। यह भूमि पुत्र भी कहलाता है। इसका सीधा प्रभाव पृथ्वी पर रहने वालों के रक्त पर पड़ता है। इस दिन जब रक्त प्रवाह हमारे शरीर में पहले से ही उष्णता व तीव्रता लिए होगा , उस दिन शरीर की मालिश करना या मदिरापान करना या तामसिक भोजन करने से रक्त दबाव अर्थात ब्लड प्रैशर में वृद्धि होगी। रक्तचाप बढ़ने से हृदय रोग, किडनी खराब होने तथा अन्य कई रोग होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
मगलवार को संकटों से बचने के लिए संकटमोचन हनुमान जी का व्रत रखने , पूजा करने, उनकी मूर्ति पर सिंदूर, चमेली का तेल , चांदी का वर्क , लाल चोला आदि अर्पित करने के लिए कहा गया। हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए प्रेरित किया गया। उल्लेखनीय है कि हनुमाान चालीसा की रचना 40 चैपाइयों में 16 वीं शताब्दी में अकबर के शासन के दौरान ,गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी । दक्षिण भारत में मंगलवार को स्कंद या कार्तिकेय या मुरगन की पूजा की जाती है। लाल वस्त्र पहन कर ,ब्रहमचर्य व्रत का पालन करते हुए एक समय मीठा भोजन व नमक रहित भोजन करने का उपाय दिया गया है। नमक न खाने से बी.पी. संतुलित रहता है। ज्योतिष में 21 मंगलवार लगातार व्रत का पालन करने का सुझाव दिया जाता है।
पंडित कृष्ण अशांत और स्व. अमृता प्रीतम की त्रिक भाव की कुछ पुस्तकों में लाल किताब पर आधारित नियमों के दृष्टिगत मंगल , शनि एवं गुरु के बारे कहा गया है कि मंगल अपने जैसे शक्तिशाली ग्रह शनि को छेड़ना नहीं चाहता। शनि बालों का कारक ग्रह है और मंगलवार के दिन शनि को अपने से दूर करना , मंगल- शनि के टकराने का सूचक है। इस लिए कई लोग शेव नहीं करते। कपड़े नहीं धोते, शराब नहीं पीते, मांस नहीं खाते। नहाने वाला साबुन शुक्र से संबंधित है परंतु कपड़े धोने वाले साबुन का संबंध शनि से है। अतः जिन वस्तुओं का संबंध शनि से है वे मंगलवार नहीं की जाती। इसी प्रकार जहां शनि और गुरु के मध्य विरोध है वहां भी शनि के कार्य गुरुवार को नहीं किए जाते जैसे बाल कटवाना, कपड़े धोना, बालों में साबुन लगाना मीट खाना आदि वर्जित माने गए हैं।
लाल किताब के रचयिता ने तो लगभग हर उपाय में अंडा मीट व शराब छोड़ने पर ही जोर दिया है।उनके अनुसार यदि ये तज दिए जाएं तो मंगल ,शनि तथा गुरु तीनों ही ग्रहों के दुष्प्रभाव ठीक हो जाते हैं।
कुल मिला कर मंगलवार को मदिरा सेवन, मांस भक्षण, बाल या नाख्ूान काटने , वीरवार को सिर न धोने के पीछे मुख्य कारण इनकी खपत पर नियंत्रण लगाना रहा जिसके पीछे ठोस धार्मिक कारण होने की बजाय सामाजिक अधिक है और धर्म के सहारे ठीक उतरा है कि कम से कम परिवारों में एक दिन या तीन दिन शराब नहीं पी जाएगी और जानवरों का कत्ले आम नहीं होगा । इसी प्रकार नवरात्रों एवं धार्मिक उत्सवों के दौरान इस प्रकार का अनुशासन देखा गया है।
यदि पंजाब में धार्मिक संस्थाएं मदिरा सेवन या मांस खाने का अनुशासन धर्म से जोड़ दे ंतो ‘उड़ता पंजाब ’ एक बार फिर ‘लहलहाता पंजाब ’ बन सकता है क्योंकि जो काम कानून नहीं कर सकता वह अब तक धर्म करता आया है।