शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिता ज्योतिषशास्त्र में भावों का महत्त्व
चतुर्थ भाव : शरीर धन तथा परिश्रम तभी सार्थक है जब कार्य करने की रूचि एवं भावना हो ||
अतः भावनाओ कामनाओं का विचार कुण्डली के चतुर्थ भाव में रखा गया है ||
कालपुरुष के चतुर्थ अंग वक्षस्थल एवं हृदय से भी इसका सम्बन्ध है ||
इसभाव में कर्क राशि पड़ती है ||
अतः चन्द्रमा चतुर्थभाव का स्वामी है || बृहस्पति इस भाव में उच्च फल देता है ||
महिलाओ की कुण्डली में यह भाव पेट के अंदुरनी हिस्सों को गर्भ को दर्शाता है ||
इस भाव का कारक चन्द्रमा ग्रह है ||
अतः यह जन का स्थान कहलाता है ||
सर्द तासीर मन की अशांति इसी भाव से देखी जाती है ||
चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह होने से जातक के
आत्मविश्वास में कमी आ जाती है एवं माँ की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है ||
यह भाव उत्तरपूर्व दिशा को दर्शाता है ||
दूध का सम्बन्ध इसी भाव से है
अतः दूध देने वाले पशु भी इसी भाव से सम्बन्ध रखते है ||
चतुर्थ भाव से
● मामा की आर्थिक स्थिति का ज्ञात होता है ||
● जीवन के दूसरे हिस्से के सुख का ज्ञात होना ||
● गृहस्थी के सुख का पता चलना ||
● युवावस्था का पता चलना ||
क्योंकि इस घर का कारक एवं स्वामी ग्रह चन्द्रमा है अतः इसभाव का रात्रि से गहरा सम्बन्ध है
यदि इसमें शुभ ग्रह हो तो जातक को
● रात में नींद अच्छी आती है ||
● शुभ समाचार बहुधा रात में मिलते है ||
और इसके विपरीत होने पर स्थितियां पूरी उलट जायेगी ||
चतुर्थ भाव से पागलपन भय मिरगीरोग खेती जायदाद माता रोगयोग वाहन जनसेवा नेतृत्व स्थानांतरण शत्रुता एवं स्वार्थ परायणता से ज्ञात होता है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)