संजय द्विवेदी : श्री गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल शाशक जहाँगीर ने गर्म तवे पर बैठा दिया था और गरम तेल में पका कर हत्या कर दी थी , लेकिन आज के कुछ सिख भाई मुगलों की क्रूरता भूल गए हैं और आज भी गुरु अर्जन देव की आत्मा की शांति के लिए हम ठंडा शर्बत पिलाते हैं , लेकिन कुछ सिख भाई सच को नहीं जानते ।
श्री गुरु अर्जन देव सिक्खों के पाँचवें गुरु थे। ये 1581 ई. में गद्दी पर बैठे। श्री गुरु अर्जन देव का कई दृष्टियों से सिख गुरुओं में विशिष्ट स्थान है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहब’ आज जिस रूप में उपलब्ध है, उसका संपादन इन्होंने ही किया था। श्री गुरु अर्जन देव सिक्खों के परम पूज्य चौथे गुरु रामदास के पुत्र थे।
श्री गुरु नानक से लेकर श्री गुरु रामदास तक के चार गुरुओं की वाणी के साथ-साथ उस समय के अन्य संत महात्माओं की वाणी को भी इन्होंने ‘श्री गुरु ग्रंथ साहब’ में स्थान दिया।
श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। सिख धर्म के पहले शहीद थे।
जागो सिख भाइयो
श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। सिख धर्म के पहले शहीद थे।
भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ। प्रथम सितंबर, 1581 को अठारह वर्ष की आयु में वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 30 मई, 1606 को उन्होंने धर्म व सत्य की रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के का राज जहाँगीर था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। 1605 में जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टïर इस्लामिक विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘तुजुके जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह श्री गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था।
इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया। जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने गुरु जी को गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए।
बाबर ने तो श्री गुरु नानक गुरुजी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु नानकदेव जी तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी।जहांगीर के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।
जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी। मसलन चार दिन तक भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहरियां में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खौलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधन मानकर स्वीकार किया।
श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30 मई 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है। गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो आप जी को ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरुजी का पावन शरीर रावी में आलोप हो गया। गुरु अर्जुनदेव जी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया।
आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को दुर्वचन नहीं बोले। गुरबाणी में आप फर्माते हैं :
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’
तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाईबन गया। तपती रेत ने भी उनकी ज्ञाननिष्ठा भंग न कर पायी। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-
तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥
जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए अमानवीय अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की इसी योजना का हिस्सा था। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया।
इधर जहांगीर की आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री गुरु नानक देव जी की दसवीं पीढ़ी थी। श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची। यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का इतिहास लिख दिया। संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए ठंडा कर दिया। 100 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्राता की सांस ली। शेष तो कल का इतिहास है, लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी।
आज कुछ सिख भाई भूल गए हैं की गुरु अर्जन देव जी को मुसलमानों ने कितनी यातनाए देकर शहीद किया था।
रोम रोम नतमस्तक
परंतु हृदय में अत्यंत ही क्षोभ है कि ऐसे देवपुरुष का इतिहास ना तो हमें कभी पढाया गया और ना ही कभी बताया गया…
लेकिन अब समय आ गया है कि हम मैकाले के षडयंत्र पूर्वक रचे गए झूठे और भ्रामक शिक्षा कुचक्र से बाहर निकले और अपनी स्वयं की, धर्माधारित शिक्षा व्यवस्था की स्थापना करें।
जिसमें अपने धर्म का अपने पूर्वजों का एवं अपने इष्ट का सम्मान हो, उनकी शौर्य गाथा को भारत का बच्चा – बच्चा जाने और उनके आदर्शों को अपनायें।
( अगर किसी भी भाई को इस लेख में कुछ गलती लगे वह कृपा करके हमें मेल करे उस गलती को लेखक को बता कर ठीक कर दिया जायेगा theindiapost@gmail.com )
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दशम गरू गोबिंद सिंह जी ने कच्छा कृपाण केश कंघा ओर कड़ा दे कर सिख की पहचान बनाई ।
उससे पहले तो सभी गुरु हिन्दू ही थे !
जबकी पंचम गुरू की वाणी तो संस्कृति में दर्ज है ।
Aap ji iss kaaraj lai ki kr rhe ho
सिखों के ही नहीं हमारे गुरु थे।
Sikhs have not fogotten the sacrifices of Guru sahibaan , the very people for which they sacrificed their lives have forgotten the purpose of Guru jis sacrifice
मुगलाें के बारे में कौन पढाता अगर ये सब इतिहास में पढाते तो, मुगलों की औलादों ही है, वो जिन्होने देश के इतिहास में लूटेरों का महिमामन्डन किया है
koti koti naman