#BababandaSinghBahadur दल खालसा के सिपाहियों की 12 मार्च 1716 ई तक सामूहिक हत्या का काम समाप्त हो गया था। परन्तु बंदा सिंह और उसके सहायक अध्किारियों को कई प्रकार की यातनाएं दी गई। उनसे बार-2 पूछा जाता था कि तुम्हारी सहायता करने वाले कौन लोग है और तुमने विशाल ध्न सम्पदा कहां छुपा कर रखी है? इस कार्य में मुग़ल प्रशासन ने तीन माह लगा दिये। परन्तु इस का परिणाम कुछ न निकला। सत्ताध्किारियों को इन लोगों से किसी प्रकार की कोई गुप्त सूचना न मिली।
अंत में 9 जून सन् 1716 ई को सूर्योदय के समय ही बंदा सिंह उसके चार वर्षीय पुत्रा अजय सिंह, सरदार बाज सिंह, भाई फतह सिंह, आली सिंह, बख्शी गुलाब सिंह इत्यादि को जो दिल्ली के किले में बंदी थे। उन्हें सरवहार खान कोलवाल और इब्राहीमुदीन खान मीर-ए-आतिश की देख-रेख में जलूस के रूप में किले से बाहर निकाला गया। जिस प्रकार इन्हें दिल्ली लाते समय किया गया था। उस दिन भी बेडियों में जकडे़ हुए बंदा सिंह को तिल्ले की कढाई वाली लाल पगड़ी और तिल्लेदार पोशाक पहनाई गई और हाथी पर बैठाया हुआ था। अन्य 26 सिक्ख जंजीरों से जकडे़ हुए उनके पीछे चल रहे थे। इस प्रकार इन्हें पुराने नगर की गलियों में से कुतुबमीनार के समीप भूतपूर्व बादशाह बहादुरशाह की कब्र की परिक्रमा करवाई गई।
बंदा सिंह को हाथी से उतार कर पृथ्वी पर बैठाया गया और उन्हें कहा गया कि या तो वह इस्लाम
स्वीकार करले अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ। परन्तु बंदा सिंह ने बहुत ध्ैर्य से मृत्यु को स्वीकार कर
इस्लाम कोठुकरा दिया। इस पर जल्लाद ने उसके पुत्रा को उस की गोदी में डाल दिया और कहा-लो इस की
हत्या करो। परन्तु क्या कोई पिता कभी अपने पुत्रा की हत्या कर सकता है? उन्होंने न कर दी।
बस फिर क्या था जल्लाद ने एक बड़ी कटार से बच्चे के टुकडे़-टुकडे़ कर दिये और उसका तड़पता हुआ दिल निकाल कर बंदा सिंह के मुंह में ठोंस दिया। ध्न्य था वह गुरु का सिक्ख जो प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा मान पत्थर की मूर्ति की भांति दृढ़ खड़ा रहा। जब बंदा सिंह विचलित न हुआ। समीप में खड़े मुहम्मद अमीन खान ने जब बंदा सिंह की ओर उस की आँखों में झांका तो उसके चेहरे की आभा किसी अदृश्य दिव्य शत्ति से जगमगा रही थी। वह इस रहस्य को देख हैरान रह गया। उसने कोतुहलवश बंदा सिंह से साहस बटोर कर पूछ ही लिया।
आप पर मुग़ल प्रशासन की तरफ से भयानक रत्तपात करने का दोष है जो अपराध् अक्षम्य है। परन्तु मेरे विचारों के विपरीत ऐसे दुष्ट कर्मों वाले के मुख-मण्डल पर इतना ज्ञान तेजोमय ज्योति क्यों कर झलकती है? तब बंदा सिंह ने ध्ैर्य के साथ उत्तर दिया-जब मनुष्य अथवा कोई शासन पापी और दुष्ट हो जाए कि न्याय का मार्ग छोड़ कर अनेक प्रकार के अत्याचार करने लग जाएं, तो वह सच्चा ईश्वर अपने विधन अनुसार उन्हें दण्ड देने के लिए मेरे जैसे व्यक्ति उत्पन्न करता रहता है। जो दुष्टों का संहार करें और जब उनका दण्ड पूरा हो जाए तो वह तुम्हारे जैसे व्यक्ति खड़े कर देता है ताकि उन्हें दण्डित कर दे।
इस्लाम न कबूल करने पर जल्लाद ने पहले कटार से बंदा सिंह की दाई आँख निकाल दी और फिर बाईं आंख। इसके पश्चात् गर्म लाल लोह की संडासी ;चिमटियोंद्ध से उनके शरीर के मांस की बोटियां खीच-खीचकर नोचता रहा। जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो गई। इन सब यातनाओं में बंदा सिंह ईश्वर और गुरु को समर्पित रहा। वह पूर्णतः सन्तुष्ट था। उसने पूर्ण शांतचित, अडिग तथा स्थिर रह कर प्राण त्यागे। बाकी के सिक्ख अध्किारियों के साथ भी इसी प्रकार का क्रूर व्यवहार किया गया और सब की हत्या कर दी गई।
तत्कालीन इतिहासकारों के एक लिखित प्रसंग के अनुसार बादशाह फर्रूखसियार ने बंदा सिंह वा उसके साथियों से पूछ-ताछ के मध्य कहा – तुम लोगों में कोई बाज सिंह नाम का व्यक्ति है जिस के वीरता के बहुत किस्से सुनने को मिलते है? इस पर बेडियों और हाथकड़ियों में जकडे़ बाज सिंह ने कहा – मुझे बाज सिंह कहते है। यह सुनते ही बादशाह ने कहा-तुम तो बडे़ बहादुर आदमी जाने जाते थे। परन्तु अब तुम से कुछ भी नहीं हो सकता। इस पर बाज सिंह ने उत्तर दिया।
यदि आप मेरा करतब देखना चाहते है तो मेरी बेड़ियां खुलवा दे तो मैं अब भी आप को तमाशा दिखा सकता हूं। इस चुनौती पर बादशाह ने आज्ञा दे दी कि इसकी बेंिड़यां खोल दी जाये। बाज सिंह हिलने डुलने योग्य ही हुआ था कि उसने बाज की भांति लपक कर बादशाह के दो कर्मचारियों को अपनी लपेट में ले लिया और उन्हें अपनी हथकड़ियों से ही चित्त कर दिया और वह एक शाही अध्किारी की ओर झपटा परन्तु तब तक उसे शाही सेवकों ने पकड़ लिया और फिर से बेड़ियों में जकड़ दिया गया।
(सोजन्य : क्रन्तिकारी गुरु नानक देव चैरिटेबल ट्रस्ट , लेखक : सरदार जसबीर सिंह)