शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : ज्योतिषशास्त्र में 7ग्रहो के साथ 2 छाया ग्रह मिला कर 9 ग्रह और 12 भाव होते है, आब हम आपको भाव का महत्व के बारे में बताएगे || सर्वप्रथम भावो का महत्व क्या है अर्थ क्या है ?
सारा खेल भावों का ही होता है , किस भाव का स्वामी ग्रह किस स्थान पर बैठा है || उस स्थान से कहाँ कहाँ अपनी दृष्टिपात कर जातक को लाभ हानि पहुंचा रहा है ||
इस शास्त्र की उपयोगिता यही है कि समस्त मानव जीवन के प्रत्यक्ष और परोक्ष विवेचन करता है ||
और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रूप में उस प्रकार प्रकट करता है ||
यही गणना करने की कला को ज्योतिषी जानता है और उस अनुरूप भविष्य को बताता है ||
जिसप्रकार दीपक अन्धकार में रखी हुई वस्तु को दिखाता है ||
ज्योतिष एक विज्ञानं है ||
ज्योतिष प्रकाश रौशनी उजाले नेत्र कु दृष्टि को कहते है ||
ज्योतिष भविष्य का ज्ञाता है ||
जो मानव को उसके जन्मकालीन ग्रहस्थिति से उसकी अच्छाइयों बुराइयो का मान करा देता है ||
ज्योतिष परब्रह्म परमात्मा के श्रीमुख से निकले अपौरुषेय वेद का नेत्र कहा गया जिसका सर्वप्रथम वर्णन ब्रह्माजी ने स्वयं किया था ||
ज्योतिषशास्त्र एक अमूल्य निधि है जितना व्यावक उतना ही व्यवहारिक भी ||
भृग-संहिता का जन्म (ज्योतिष ज्ञान (1) शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
ज्योतिष सीखें : गुरु होते है शाश्वत (अध्याय २) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
भृगसंहिता : मंगल-ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 3 , शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज द्वारा)
भृग संहिता में सूर्य एवं बुध ग्रहो का स्वभाव और प्रभाव : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज (अध्याय 4)
भृग्सहिता : शनि एवं शुक्र ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 5)
भृग्सहिता : गुरु एवं राहु और केतु-ग्रह का स्वभाव और प्रभाव (अध्याय 6)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता अनुसार जन्म-नक्षत्र और रत्न-रुद्राक्ष (अध्याय 7)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता अनुसार जन्म-नक्षत्र और रत्न-रुद्राक्ष (अध्याय 8)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (अध्याय 9)
आओ ज्योतिष सीखें : भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव अध्याय 10)